इकबाल अषहर की शायरी
किसी को काटो से चोट पहुंची ,किसी को फूलो ने मार डाला जो इस मुसीबत से बच गये थे , उन्हे उसूलों ने मार डाला... ❤❤❤❤ लबो को तसबी दू कली से,बदन को खिलता गुलाब लिखूं मै खुसबुओ की जुबा समझ लू तो उसके खत का जवाब लिखूं.. ❤❤❤❤ दायर-ए-दिल मे नया-नया सा चिराग कोई जला रहा है मै जिसकी दस्तक का मुंतजीर था वो मुझे वो लम्हा बुला रहा है तमाम रंगो से जिंदगी के मेरा तारूफ़ करा रहा है अभी वो मुझको हँसा रहा था,अभी वो मुझको रुला रहा है.. . ❤❤❤❤ अभी वो रोशनी की तलब मे गुम है,मै खुबुओ की तलाश मे हू मै दायरे से निकल रहा हू,वो दायरे मे समा रहा है.. सुनो समुन्दर की शोक लहरो हवा ठहरी है तुम भी ठहरो वो दूर साहिल पे एक बच्चा अभी घरोंदे बना रहा है.. ❤❤❤ ❤ ©Iqbaal_ashar