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गांधी अम्बेडकर की समाधि

गांधी अम्बेडकर की समाधि है रोती भवर में फंसी है गरीबो की नईया कैसे जलेगी यहां शांति जोती गाँधी अम्बेडकर की समाधि है रोती जंग हो रही है, अश्रु बह रहे हैं बिलख कर के हमसे ये कह रहे हैं सहज ही नहीं है सीपो का मोती गाँधी अम्बेडकर की समाधि है रोती भाव मर गया है प्रेम खो गया है कौन ये रगों में बारूद बो गया है लहू बन गया है गंगा का पानी याद कर लो फिर से गाँधी अम्बेडकर की जुबानी                      ©Rohit Yadav              

ये जो लम्हा है

ये जो लम्हा है लमहो मे यादे हैं तेरी मोहब्बत की ये खुदा से फरियादे हैं हर एक चिट्ठी में वो तेरी खुश्बू है उन खुश्बू में मेरा ठिकाना है जो तेरी आँखे हैं, एक समंदर हैं उस समंदर में ही डूब जाना है ये जो लम्हा है..... जो तेरा चेहरा है चाँद दीवाना है उस चंदा को घर में सजाना है जो तेरे संग हूँ तो लगता फसाना है अब इस फसाने को सच कर दिखाना है ये जो लम्हा है..... 

था मै नींद में

था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था.... . बड़े प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था.... . ना जाने था वो कौन सा अजब खेल मेरे घर में.... . बच्चो की तरह मुझे कंधे पर उठाया जा रहा था.... . था पास मेरा हर अपना उस वक़्त.... . फिर भी मैं हर किसी के मन से भुलाया जा रहा था... . जो कभी देखते भी न थे मोहब्बत की निगाहों से.... . उनके दिल से भी प्यार मुझ पर लुटाया जा रहा था... . मालूम नही क्यों हैरान था हर कोई मुझे सोते हुए देख कर.... . जोर-जोर से रोकर मुझे जगाया जा रहा था... . काँप उठी मेरी रूह वो मंज़र देख कर.... . जहाँ मुझे हमेशा के लिए सुलाया जा रहा था.... . मोहब्बत की इन्तहा थी जिन दिलो में मेरे लिए.... . उन्ही दिलो के हाथों आज मैं जलाया जा रहा था....

वो दिन लौटा दो

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हर एक तस्वीर जला दिया मैंने - मेरी कविता

हर एक तस्वीर जला दिया मैंने  हर एक तस्वीर जला दिया मैंने हाँ अब जाकर तुझे भुला दिया मैंने बरसो से कसक थी सीने में अब इस दिल को भी बहला दिया मैंने ख़त थे तेरे हज़ारों मेरे नाम के हर एक ख़त को जला दिया मैंने हाँ अब जाकर भुला दिया मैंने             ©Rohit_Yadav

तो फिर रोने को क्या होता

खुशी हमदम अगर होती तो फिर रोने को क्या होता मुझे वो मिल गयी होती तो फिर खोने को क्या होता वो मुझसे दूर ना होती मै उससे दूर ना होता ये अनहोनी ना होती तो फिर होने को क्या होता थक कर जब आता हू तो कंधे चीख उठते है ये जीवन बोझ ना होता तो फिर ढोने को क्या होता पड़े रहते यू ही बंजर तुम्हारे खेत सदियो तक मै मिट्टी में ना मिला होता तो फिर बोने को क्या होता                        ©A. M_TURAZ

बहुत खूबसूरत हो तुम - राहत फराज़

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम कभी मैं जो कह दूँ मोहब्बत है तुम से तो मुझ को ख़ुदा रा ग़लत मत समझना कि मेरी ज़रूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम हैं फूलों की डाली पे बाँहें तुम्हारी हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी जो काँटे है सब अपने दामन में रख लूँ सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना किसी और से देखो दिल मत लगाना कि मेरी अमानत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा और इस पर ये काली घटाओं का पहरा गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल वो पाकीज़ा मूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए वो पहली मोहब्बत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम ...