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Showing posts from May, 2019

तो फिर रोने को क्या होता

खुशी हमदम अगर होती तो फिर रोने को क्या होता मुझे वो मिल गयी होती तो फिर खोने को क्या होता वो मुझसे दूर ना होती मै उससे दूर ना होता ये अनहोनी ना होती तो फिर होने को क्या होता थक कर जब आता हू तो कंधे चीख उठते है ये जीवन बोझ ना होता तो फिर ढोने को क्या होता पड़े रहते यू ही बंजर तुम्हारे खेत सदियो तक मै मिट्टी में ना मिला होता तो फिर बोने को क्या होता                        ©A. M_TURAZ

बहुत खूबसूरत हो तुम - राहत फराज़

बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम कभी मैं जो कह दूँ मोहब्बत है तुम से तो मुझ को ख़ुदा रा ग़लत मत समझना कि मेरी ज़रूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम हैं फूलों की डाली पे बाँहें तुम्हारी हैं ख़ामोश जादू निगाहें तुम्हारी जो काँटे है सब अपने दामन में रख लूँ सजाऊँ मैं कलियों से राहें तुम्हारी नज़र से ज़माने की ख़ुद को बचाना किसी और से देखो दिल मत लगाना कि मेरी अमानत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा है चेहरा तुम्हारा कि दिन है सुनहरा और इस पर ये काली घटाओं का पहरा गुलाबों से नाज़ुक महकता बदन है ये लब हैं तुम्हारे कि खिलता चमन है बिखेरो जो ज़ुल्फ़ें तो शरमाए बादल फ़रिश्ते भी देखें तो हो जाएँ पागल वो पाकीज़ा मूरत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम जो बन के कली मुस्कुराती है अक्सर शब हिज्र में जो रुलाती है अक्सर जो लम्हों ही लम्हों में दुनिया बदल दे जो शाइ'र को दे जाए पहलू ग़ज़ल के छुपाना जो चाहें छुपाई न जाए भुलाना जो चाहें भुलाई न जाए वो पहली मोहब्बत हो तुम बहुत ख़ूब-सूरत हो तुम ...

वो हमे बेघर कर रहे हैं l मेरी कविता

बने बनाए घर को खंडहर कर रहे हैं वो हमे खुद के घर से बेघर कर रहे हैं बाशिंदे है हम खुले आसमां के वो मेरे गाँव को अब शहर कर रहे है वो हमे....... पुरखों की इबारत को मिटाने की कोसीश कोई एक नहीं हर एक घर कर रहे हैं वो हमे  खुद के घर से बेघर कर रहे हैं ईटों से नहीं जास्बातो से बनाया था तब जाकर मकान से वो घर कहलाया था मेरे पोते उसे अब जर जर कर रहे है वो मेरे ख़ुद के घर से बेघर कर रहे हैं l                 ©Rohit_yadav 

लड़कपन का नशा

लड़कपन का नशा उस पर मुहब्बत और पागलपन, मेरी इस ज़िंदगी का ख़ूबसूरत दौर पागलपन ! मेरे घरवाले कहते हैं बड़े अब हो चुके हो तुम, मगर मन फिर भी कहता है करूं कुछ और पागलपन !! हवा के साथ उड़ने वाले ये आवारगी के दिन, मेरी मासूमियत के और मेरी संजीदगी के दिन ! कुछेक टीशर्ट, कुछेक जींस और एक कैप छोटी सी, मेरे लैपटॉप और मोबाइल से ये दोस्ती के दिन !! अजब सी एक ख़ुशबू फिर भी घर में साथ रहती है, कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है……..! मेरी बाइक की पिछली सीट जो अब तक अकेली है, इधर लगता है उसने कोई ख़ुशबू साथ ले ली है ! मगर इस बीच मैं बाइक पे जब-जब बैठता हूं तो, मुझे लगता है कांधे पर कोई नाज़ुक हथेली है !! यही एहसास मुझमें सारा सारा दिन महकता है, मुझे छूने को उसका मख़मली पल्लू सरकता है ! बुलाती है किसी की दालचीनी सी महक मुझको, मेरा ही नाम ले-लेकर कोई कंगन खनकता है !! सुबह में रात में और दोपहर में साथ रहती है, कोई मासूम सी लड़की सफ़र में साथ रहती है…..! समय जब भागता है रात गहरी होने लगती है, तो उसकी याद की शम्मा सुनहरी होने लगती है ! मेरी पलकों पे उसके ख़्वाब उगने लगते हैं जैस...

याद तो ज़रूर होगा? मेरी कविता

कोरे काग़ज़ पे पैगाम भेजना तेरी हर यादों को सहेजना इन्ही यादों से प्यार अपना मशहूर होगा  याद तो ज़रूर होगा? ❤️❤️❤️ मेरे आने से वो तेरा बेबाक हो जाना मोहब्बत के सपनो का था अशियाना लोगों की नज़रें वो बदलता ठिकाना याद तो ज़रूर होगा ❤️❤️❤️ बात बात पर तेरा रूठ जाना मेरी शायरी करना वो तेरा मुस्कुराना शर्मा के तेरा दांतो तले उंगली दबाना याद तो ज़रूर होगा? ❤️❤️❤️ मेरे बुलाने से तेरा छत पे नंगे पाओं आ जाना हमारे इश्क़ के खतों का अखबार हो जाना तेरी आशिकी मे यू मेरा बर्बाद हो जाना याद तो ज़रूर होगा?                 ©ROHIT_KALAMKAR

ठहरी ठहरी सी तबीयत मे रवानी आई

❤❤❤❤ ठहरी -ठहरी से तबीयत मे रवानी आई आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई.. आज फिर  नींद को आँखो से बिछड़ते देखा आज फिर याद चोट कोई पुरानी आई.. मुद्दतों  बाद चला उन पे हमारा जादू मुद्दतों  बाद हमे बात बनानी आई.. मुद्दतों   बाद पशेमाँ  हुआ दरिया हमसे मुद्दतों  बाद हमे प्यास छुपानी  आई.. मुद्दतों   बाद खुली उस्वत-ए-सेहरा हमपर मुद्दतों  बाद हमे खाक उड़ानी आई.. मुद्दतों   बाद मयस्सर हुआ मा का आचल मुद्दतों  बाद हमे नींद सुहानी आई.. इतनी आसानी मिलती नही फ़न  की दौलत ढल गयी उमर तो गज़लो पे जवानी आई.. ❤❤❤❤ ©iqbal_ashar