मेरी कविता

नागफनियों की गली में

गीत -

गहन गिरवर सघन वन में
बहकती पुरवा पवन में
दहकते धरती गगन में महकने दो प्यार मेरा
नागफनियों की गली में फूल का व्यापार मेरा
झोपड़ी या महल मैं कब देखता हूँ
हर खुली छत पर कबूतर भेजता हूँ
लोग लौटे हैं जहाँ से मुंह छुपाकर
मैं उन्ही गलियों में दर्पण बेंचता हूँ
चोट खाये लोग रहते जिस गली में
है वहीँ मरहम का कारोबार मेरा
नागफनियों की....................
खून के छींटे धरा से धो रहा हूँ
जो पुकारे मैं उसी का हो रहा हूँ
कल जहाँ बारूद की फसलें उगी थी
आज उन खेतों में मेंहदी बो रहा हूँ
दहकते अंगार बिखरे जिस गली में
है वहीँ चन्दन से निर्मित द्वार मेरा
नागफनियों की.....................
दिल में तेरे प्यार की दुनिया दफ़न है
भोर में ही दोपहर जैसी तपन है
मैं इधर शादी का जोड़ा बुन रहा हूँ
तू उन्ही धागों से क्यों बुनता कफ़न है
अर्थियों पर ही किया श्रृंगार तुमनें
डोलियों में चल रहा श्रृंगार मेरा
नागफ...........................

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